हमारी खिड़की के बाहर का जो क्रिकेट मैच हुआ करता था बड़ा ही
रोमांचकारी | हरेक उम्र के खिलाड़ी, छोटा सा फिल्ड, नए-नए नियम जो प्रायः प्रतिदिन
बदलते रहते और उसके दर्शकगण जोकि खिलाड़ियों के पारिवारिक कुटुंब ही थे, के कारण मैच का रोमांच चरम स्तर का चुम्बन करने लगता | हाँ, उस क्रिकेट की खास बातों में से एक यह भी थी कि उसमे किसी अम्पायर की व्यवस्था नहीं थी | कारण, आरंभ में तो इसकी व्यवस्था की गई थी लेकिन
अंपायर मैच को रोमांचक बनाने का हिस्सेदार बनने के लिए खुद भी खेलने की जिद करने
लगता था, अंततः अंपायर व्यवस्था को ही रद्द कर दिया गया | इस खेल का एक और नियम था
कि विपक्षी टीम के खिलाड़ी को भी अपनी टीम की बैटिंग के समय फील्डिंग करनी पड़ती थी,
हालाँकि यह नियम कुछ लचीला था, गोया कि खिलाड़ियों की संख्या ज्यादा हो जाती तो यह
नियम लागू नहीं होता |
हमलोग अपनी
खिड़की से क्रिकेट का दर्शक बनते और किरण अपनी बालकोनी से | किरण के दर्शक बनते ही
कॉलोनी में नए-नए खिलाड़ी पैदा होने लगे थे | खिलाड़ी की संख्या इसीलिए भी बढ़ने लगी
क्योंकि अब दूसरे कॉलोनी के लड़कों के लिए भी यहाँ का अनुशाषित फिल्ड, यहाँ के प्रतिदिन परिवर्तनकारी नियम और यहाँ
के देवलोक साम्य दैदीप्यमान दर्शकगण आकर्षण का कारण बन गए थे |
किरण के भाई को
छोड़कर सारे खिलाड़ी अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहण करने में पूरी जान लगा देते, जिससे
कि किरण की नजर का सुगन्धित झोंका उस पर भी पड़े | बल्लेबाज ताबड़तोड़ रन बनाने की
कोशिश करता – ये गई गेंद बाउंड्री लाईन से बाहर और आऊट (यहाँ का नियम ही यही था)-
और बॉलर पिछवाड़े से जोर लगा कर गेंद फेंकता जैसे कि साक्षात शोएब अख्तर हों |
किरण को इस बात
की ओर तनिक भी ध्यान नहीं था कि खिलाड़ियों की भीड़ अचानक से क्यों बढ़ने लगी है | वास्तव में वह भले ही शारीरिक रूप से बालकोनी से मैच देख रही हो लेकिन मानसिक रूप से
वह पंकज जी की खिड़की से होकर उसके कमरे में पहुँच गई होती थी |
कॉलोनी के ही
कुछ लड़के जो किरण को कॉलोनी की अमानत समझते थे यह सोचकर खासे बेचैन रहते कि यदि
दूसरी कॉलोनी से इन उच्चवर्गीय खिलाड़ियों का यूँ ही आयत होता रहा तो हो न हो इस
कॉलोनी की अमानत को कोई और उड़ा ले जाएगा और हमलोग हाथ मलते रह जायेंगे| अमानत के
इन तथाकथित पहरेदारों के चेहरे पर फ्यूज उड़न भाव कभी-कभी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता
था |
कॉलोनी मे वहीँ
फिल्ड के बगल में एक जुड़वा भाई रहता था- राम और श्याम | दोनों ग्रैजुएशन का छात्र
था, उस कॉलोनी क्रिकेट का पुराना और जिम्मेदार सदस्य तथा साथ ही जुझारू
खिलाड़ी भी था | शक्ल-सूरत से लेकर सीरत तक दोनों की बिलकुल ही एक जैसी थी | हमलोगों की ज्यादा
बातचीत नहीं हुई थी उससे आरंभ में इसीलिए क्रिकेट खिलाड़ी के तौर पर हमलोग दोनों को
उसकी हँसने की अलग-अलग शैली से ही भिन्न-भिन्न कर पाते थे | राम, बड़ा भाई जब हँसता
तो उसके मुँह के सारे दांत बाहर निकलने के लिए बेताब होने लगते जबकि श्याम हँसने
के समय होठों को दबाने की असफल कोशिश करता और उसके बायें गाल पर एक डिम्पल भी उभर आता |
दोनों भाई
चूँकि कुछ सालों से वहीं रह रहे थे इसीलिए अब स्वंय को उस कॉलोनी का ही सदस्य
समझने लगे थे | अतः “कॉलोनी में कोई असामाजिक कृत्य नहीं होने देने का सारा
क्षार-भार अपने कंधों पर उठाये फिरते थे” वे दोनों | उनकी स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही थी जैसे
एक मुहल्ले के आवारा कुत्ते अपने मुहल्ले
में भोज होने पर दूसरे मुहल्ले के आवारा कुत्तों को पास फटकने नहीं देते |
वहाँ जैसे है
खिलाड़ियों का आयत होने लगा दोनों भाईयों की श्वान नासिका ने खतरों को सूंघ लिया |
कॉलोनी क्रिकेट निर्माता खिलाड़ियों के बीच अब यह नियम बनाने का मुद्दा जोर शोर से
उठाया जाने लगा कि केवल अपनी कॉलोनी के खिलाड़ी ही उस क्रिकेट में शामिल हो सकते
हैं | लेकिन इस नियम के बनने से पडोसी कॉलोनी से संबंध बिगड़ने का डर था इसीलिए यह
नियम बनाना तलवार की धार पर चलने जैसा था और अधिकांश अपनी मित्रता को भी यथावत
रखना चाहते थे इसलिए यह नियम पारित नहीं हो सका |
राम-श्याम की
भी हालाँकि दूसरे कॉलोनी वालों से मित्रता थी, लेकिन वो दोनों नहीं चाहते थे कि बाहर
से आये लड़के क्रिकेट खेलने के अतिरिक्त ध्यान दर्शकों पर लगाए, विशेषकर किरण के मुखकमल
का रसपान करे | क्योंकि, दोनों भाई प्यार करते थे किरण से और वो भी एकतरफा वाला
प्यार | दोनों का प्यार ‘गोदान’ की ‘मालती’ के लिए ‘मेहता’ का प्यार था, एक खूंखार
शेर जो अपनी शिकार पर किसी की नजर नहीं पड़ने देता | खास बात ये थी कि चूँकि दोनों
सहोदर भाई थे और अभी छात्र जीवन में ही गमन कर रहे थे इसीलिए अपने एकतरफा
प्रेम-प्रसंग का पर्दाफास एक दूसरे के समक्ष करने से घबराते थे, या ये कहूँ कि डरते थे तो अधिक युक्तिसंगत होगा |
........ क्रमशः