Thursday 3 October 2013

अथ पंकज पुराण: क क क किरण (पार्ट -1)

         कोई पूछता नाम, नाम क्या है आपका? फ़िल्मी स्टाईल में वो बोलती "किरण, किरण भारद्वाज" | पंकज जी तो एकदम शाहरुख़ बन जाते "क क क किरण, वो है मेरी किरण" |
        कान्वेंट स्कूल की छात्रा, फर्राटेदार अंग्रेजी, ग्यारहवीं में बायलोजी, डॉक्टर बनने की चाहत, अपनी से ज्यादा मम्मी - पापा की | तीन भाइयों की अकेली, सबसे छोटी, लाडली बहन किरण |
        भाई नं 1 - मुंबई में किसी एमएनसी में इंजीनियर, विवाह योग्य उम्र | सब तो यही कहते कि शादी वादी सब कर धर के बैठा है, चूना लगा दिया बाप को | भाई नं 2 - केरल की किसी सरकारी कॉलेज में मेडिकल स्टूडेंट | दिखने में स्मार्ट, पहली बार मूंछ छिला कर आया तो कॉलोनी वाले कहते "नालायक है, बाप जिन्दा है और मूंछ छिला कर आया है शरम भी नहीं आती" | भाई नं 3 - पटना में लगातार तीन सालों से इंजीनियरिंग की तैयारी |  इस बार निकलने का चांस है, मम्मी - पापा को तो हरेक बार यहीं आश्वासन मिलता |
        पिता, फॉरेस्ट विभाग में रेंजर थे, रांची में | अकूत काला धन से दरभंगा का घर चमका रखा था | पायदान तक पर सफ़ेद मार्बल लगा रखा था, झक्क सफ़ेद, दूधिया और अहाते में कई तरह के फूल - अड़हुल, कनेर, गुलाब और एक जो छोटा - छोटा फूल होता है उजला - उजला, डंठल नारंगी, सुंगंधित, सुबह - सुबह जमीन पर ढेर बिखडा रहता है, वो भी था | 
        माँ, असाधारण सा दिखने की कोशिश करने वाली एक साधारण सी महिला थी | चेहरे पर अमीरी चमकता रहता और चलती तो चाल में एक गर्व झलकता | कॉलोनी के लड़के यदि दिन में चार बार भी देख ले तो - "आंटी नमस्ते - आंटी नमस्ते" कर आशीर्वाद लेते नहीं अघाते और आंटी भी भाव - विभोर हो जाती |
       बचपन में किरण पढने में बहुत होशियार थी | है तो अभी भी लेकिन अब बचपन बीत चुका है और वो विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होने वाले उमर में पहुँच चुकी है, परिणामस्वरूप उसकी होशियारी में भी विभाजन हो गया है |
        घर में सबसे छोटी और पैसा भरा पड़ा था घर में , अतः इनकी हरेक इच्छा जुबान से फिसली नहीं की पूरी हो जाती, नो खीच - खीच, नो टेंशन | इसीलिए स्वाभाव से थोड़ी जिद्दी, थोड़ी अल्हड़ लेकिन थी तो पढने में होशियार तो सात खून माफ़ |
        छठी क्लास में नवोदय विद्यालय की परीक्षा में पास हुई | परिवार में सब खुश थे, बहुत खुश और वो भी थी, लेकिन रोये ही जा रही थी | क्यों, क्योंकि अब उसे दूर रहना पड़ेगा अपने घर से चूँकि नवोदय विद्यालय तो दरभंगा शहर से दूर था | जाने के समय में तो खूब पैर पटक - पटक कर विलाप कर रही थी | छठी क्लास में तो सभी बच्चे ही होते हैं न, खास कर वो जो बचपन से अपने परिवार के साथ रहकर पढ़ते हैं | लेकिन जैसे ही आप पढ़ने के लिए गृहत्याग करते हो तो ज्ञान में वृद्धि यकायक होने लगती है और आप अल्प समय में ही अनुभवी हो जाते हैं | हाँ, ये अलग बात है की सभी का ज्ञान - क्षेत्र अलग - अलग होता है, स्वभावनुसार |
        इस प्रकार राजकुमारी किरण हॉस्टल पहुँच गई | "ऊंह, यहाँ पर तो टीवी भी नहीं है, बेड कितना पतला है, खाना भी बेकार है, पता नहीं सारे स्टूडेंट कैसे खाते हैं, छीह"- आरंभ में यही हाल रहा किरण का | लेकिन धीरे - धीरे किरण फलक से उतर कर जमीन पर चलने लगी, गुलाबजामुन से आम हो गई | होता है भाई, जब परिस्थितियाँ ही अंगूठा दिखाने लगे तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है | .............क्रमशः

3 comments:

  1. richa srivastava3 October 2013 at 08:35

    agle episode ka intezaar hai..

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  2. नवोदय :) मेरे स्कूल की याद दिला दी तुमने तो

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  3. अति सुन्दर !
    ज्ञान का विभाजन..... गुलाबजामुन से आम :)
    सच के करीब, गुदगुदाता लेखन

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