खेला करते छुपन-छुपाई
छुप जाता कहीं कोने में ,
खेल हुआ कब बंद क्या पता ?
खेल बीतता सोने में,
काश लौट जाते उस क्षण में
ईश्वर से फरियाद है,
वह मौजूंपन वह अल्हरपन
बचपन के दिन याद है .
क्या होता है भूख, पता है ?
पता नहीं चल पाता था,
जब-जब होती जीत हमारी
तब शरीर बल पाता था,
न कोई राजा न कोई रानी
बस केवल बारात है,
वह मौजूंपन वह अल्हरपन
बचपन के दिन याद है .
खेल - खेल में होती कुट्टी
वह तुनक - तुनक दोषारोपण ,
समय आ गया खेल का जब
वह पुलक -पुलक बंधन टूटन,
पुलक उठा हु याद हुए जब
पुलकन के संवाद है ,
वह मौजूंपन वह अल्हरपन
बचपन के दिन याद है .
विहगों की चहकन के पीछे
भी विहगा बन जाते थे,
नभ में न उड़ने के दुख को
भूल बहुत सुख पाते थे,
मिट्टी के घर हुए तो क्या है
सारा घर आबाद है,
लोड़ी माँ की बड़ी सुरीली
मुझे सुलाया जाता था,
मैं माँ की गोदी का राजा
मुझे झुलाया जाता था,
पता नहीं होता था मुझको
क्या पंचम क्या नाद है,
विहगों की चहकन के पीछे
भी विहगा बन जाते थे,
नभ में न उड़ने के दुख को
भूल बहुत सुख पाते थे,
मिट्टी के घर हुए तो क्या है
सारा घर आबाद है,
वह मौजूंपन वह अल्हरपन
बचपन के दिन याद है .
लोड़ी माँ की बड़ी सुरीली
मुझे सुलाया जाता था,
मैं माँ की गोदी का राजा
मुझे झुलाया जाता था,
पता नहीं होता था मुझको
क्या पंचम क्या नाद है,
वह मौजूंपन वह अल्हरपन
बचपन के दिन याद है .