Thursday 15 December 2011

वंशजो के लिए

चकमकाती बहुमंजीली इमारतों का रहस्य 
उसकी नीव उसका आधार है.
वही है उसकी जीवन्तता का सहारा
जिसने संपूर्ण जीवन उसी के लिए वारा |

इमारतें इतराती, 
अपने अंदर होने वाली बैठकें गोस्ठियों पर 
प्रसन्नचित होकर समझती 
अपने को मूल्यवान  धरोहर |

इमारतें मगरूर,
आकर्षणमयी सुन्दरता के नशे में चूर.
उसे पता नहीं है वास्तविकता 
आखिर क्या है सत्य में,
कौन है उसका सहायक
इस नाटक के नेपथ्य में.

उसे पता नहीं है नींव की पहचान
कौन है आधार उसका प्राण,
मिटटी का मोटा पाट जिसका कफ़न है 
जो बरसों से जिन्दा कब्र में दफ़न है,
सहने को तैयार है गुमनामी की जिन्दगी 
जीने को तैयार है मरने की सी जिन्दगी,
बस: अपने आश्रितों को जिलाने के लिए 
अपने वंशजों को पहचान दिलाने की लिए |