Saturday 12 May 2012

कुठाराघात

अंजुली भर-भर जल राशि
सूरज को समर्पित क्यों करूँ?
मूर्ति के चरण पर भोग भी क्योंकर धरूँ?
प्यासों के मुख में जल भर के
क्षुधा तृप्ति करूँ भूखे नर के,
बादल हे अनंत अम्बर के,
जहाँ तुम्हारी नहीं जरूरत
तुम ज्यादातर वहीँ पे बरसे|
मैं लक्ष्मी पूजन क्यों करूँ?
हंसारुढ़ा का वंदन भी क्योंकर करूँ?
धन से उपार्जन रीति बनी
धन धनपतियों की मीत बनी,
पूंजी की तरफ उन्मुख शिक्षा
वो कैसे पढ़े जो पेट भी भरते मांग भिक्षा|
उस देवी को जीवनदायिनी क्यों कहूँ?
मुख रुधिर लगे उन मनुजो को मैं
नरपिशाच क्यों न कहूँ?
जीवन देने के बदले में बलि लेकर वो खुश होती है
उससे पहले हम दोषी हैं,
यदि रक्षा हम कर सकते नहीं
तो मृत्यु मुंह में झोकने का अधिकार क्या मेरा मरौसी है?
बस इसीलिए की हम बुद्धिजीवी प्राणी हैं,
और वह बेबस निरीह पशु है|
भोले-भाले उन पशुओं की
आवाज मैं क्यों न बनू?
भूखे - प्यासे - दरिद्रों का सरताज मैं क्यों न बनू?

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