Saturday 7 January 2012

जो तुम कहो

 आज फिर सितार को संवार लूँ
जो तुम कहो,
उँगलियों को तार पे बुहार दूँ
जो तुम कहो|

छेड़ दू वह राग जोकि
शांत जग का गान है,
चैन चहुँ चाहिये
यह गान ही तो प्राण है,
माह चली उष्ण की, फुहार दूँ
जो तुम कहो|

राग उपजे तर्जनी से
या सितार तार से,
यह मधुरतम कल्पना
सहयोग कोमल प्यार से,
जग भयाकुल मैं सभी को, प्यार दूँ
जो तुम कहो|

कुछ भी करूँ और न डरूं
जब तेरा आदेश हो,
तब कार्य भी होंगे सफल
जब पूछ श्री गणेश हो,
ले इम्तिहान स्वयं को, निसार दूँ
जो तुम कहो|
आज फिर सितार को संवार लूँ
जो तुम कहो|



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