Tuesday 13 September 2011

सूखी हुई लीक

मासूमियत भरे चेहरे पर
दो बड़ी-बड़ी आँखें,
आँखों में आसूओं  की बूंदें 
पलकों का बांध तोड़कर
धीरे-धीरे सरकती है,
और पीछे छोड़ जाती है
गालों पर सूखी हुई लीक.

यह लीक, हरवक्त दिलाती है याद,
अपने परिवार के बचपन में हुई हत्या की
तथा अपने बचपन के हत्या की.
यह लीक, दिलाती है याद,
अपने बचपन को लावारिश बन जाने की
तथा लावारिश बीते अपने बचपन की.
यह लीक, याद कराती है,
उस हिंसक भरे वातावरण की
तथा वातावरण को हिंसक बना देने वालों की, 
जिसके लिए कोई भेदक रेखा नहीं थी -
अमीरी - गरीबी के बीच,
बच्चे, बूढों और जवानों के बीच,
पुरुषो और महिलाओं के बीच,
और यहाँ तक की -
जिन्दा और मुर्दा के बीच ;
और टूटकर बिखर गया
बचे हुए बच्चो का बचपन,
घुटकर रह गया
युवकों के अरमानों का गला,
बचे हुए बूढों का
स्वप्न भी हो गया धूमिल :
सुखी हुई लीक, बार-बार पूछती है प्रश्न -
लम्बे ऊँचे उड़ान में कैसे होंगे सहायक,
हमारे कुचले हुए पंख,
जिसमें वेदना है असंख्य. 


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