पावस की तीव्र उमस में,
भूली भटकी वायु की एक गुच्छ ने,
खिरकी से घर में कदम रखा,
ईस्वर को धन्यवाद् दे हमने ,
उसे सर आखों पर बिठा लिया,
नाक ही क्यों,
रोम रोम से उसे चूसा लिया.
यही क्रिया दुबारा शरद में हुई,
रोम कम्पित हो उठा ,
और मैं बना छुई -मुई,
ईस्वर को कोष मैंने,
झट रजाई खीच लिया,
बदन को ढक कर मैंने,
मुट्ठी को भी भीच लिया.
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