बादल उमड़ा,
मुझे किसी ने याद किया क्या?
बादल गरजा,
विरह की मारी याद किया क्या?
बरसा बादल,
मुझे लगा वह मीरा बनकर नाच रही है,
विह्वलता में प्रेम गहनता जाँच रही है,
बूंद बरस कर मिट्टी के तन पोर-पोर में समा गया है,
सोंधी खुशबू भूली नेह को जगा गया है,
हरी दूब जो झुलस गयी थी हरा हो गया,
मीरा के नटनागर बनने खड़ा हो गया|
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